पर्यावरण संरक्षण पर निबंध ( Essay on Save Environment in Hindi )

धरती पर जीवन को नियमित सुचारू रूप चलाने के लिए पर्यावरण प्रकृति का एक बहुमूल्य उपहार है। प्रकृति के उपस्थित हर एक चीज जिसका उपयोग हम जीवित रहने के लिए करते हैं वह सभी पर्यावरण के अन्तर्गत आता है। जैसे- हवा, पानी प्रकाश, भूमि, पेड़, जंगल और प्राकृतिक के अन्य तत्व।

 

पर्यावरण संरक्षण पर निबंध ( Essay on Save Environment in Hindi )

पर्यावरण प्रदूषण

हमारा पर्यावरण धरती पर स्वस्थ जीवन को अस्तित्व में रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फिर भी हमारा पर्यावरण दिन-प्रतिदिन मानव निर्मित तकनीक तथा आधुनिक युग के आधुनिकरण के वजह से नष्ट होता जा रहा है। इसलिए आज हम पर्यावरण प्रदूषण जैसे सबसे बड़े समस्या का सामना कर रहे हैं।

सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, भावनात्मक तथा बौद्धिक रूप से पर्यावरण प्रदूषण हमारे दैनिक जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित करता जा रहा है। पर्यावरण प्रदूषण से वातावरण में विभिन्न प्रकार के बीमारीयों का जन्म हो रहा है, जिसे व्यक्ति जीवन भर झेलता रहता है। यह किसी समुदाय या शहर की समस्या नहीं है बल्कि दुनिया भर की समस्या है तथा इस समस्या का समाधान किसी एक व्यक्ति के प्रयास करने से नहीं होगा। अगर इसका निवारण पूर्ण तरीके से नहीं किया गया तो एक दिन पृथ्वी पर जीवन का कोई अस्तित्व नहीं रहेगा। प्रत्येक आम नागरिक को सरकार द्वारा आयोजित पर्यावरण आन्दोलन में शामिल होना चाहिए।

पर्यावरण संरक्षण

हम सभी को अपनी गलती में सुधार करना होगा तथा स्वार्थपरता त्याग कर पर्यावरण को प्रदूषण से सुरक्षित तथा स्वस्थ करना होगा। यह मानना कठिन है, परन्तु सत्य है की प्रत्येक व्यक्ति द्वारा उठाया गया छोटा सकारात्मक कदम बड़ा बदलाव कर सकता है तथा पर्यावरण गिरावट को रोक सकता है। वायु तथा जल प्रदूषण द्वारा विभिन्न प्रकार के रोग का जन्म होता है जो मनुष्य के जीवन में खतरा उत्पन्न करती है।

पर्यावरण प्रदूषण का मनुष्य के जीवन पर प्रदुर्भाव

पर्यावरण के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती तथा हमें भविष्य में जीवन को बचाये रखने के लिए पर्यावरण की सुरक्षा के बारे में सोचना ही होगा। यह पृथ्वी पर निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की ज़िम्मेदारी है। हर व्यक्ति सामने आये तथा पर्यावरण संरक्षण के मुहिम का हिस्सा बने।

पृथ्वी पर विभिन्न चक्र है जो नियमित तौर पर पर्यावरण और जीवित चीजों के मध्य घटित होकर प्रकृति का संतुलन बनाये रखते हैं। जैसे ही यह चक्र विक्षुब्ध होता है पर्यावरण संतुलन भी उससे विक्षुब्ध होता है जो निश्चित रूप से मानव जीवन को प्रभावित करता है। हमारा पर्यावरण हमें पृथ्वी पर हजारों वर्ष तक पनपने तथा विकसित होने में मदद करता है, मनुष्य को प्रकृति द्वारा बनाया गया पृथ्वी ग्रह का सबसे बुद्धिमान प्राणी माना जाता है, मनुष्यों मे ब्रम्हांड के तथ्यों को जानने की बहुत उत्सुकता होती है जो उन्हें तकनीकी उन्नति की ओर अग्रसर करता है।

आज वर्तमान समय में किसी भी चीज को स्वास्थय के नजरिए से सही नहीं बताया जा सकता, जो भी कुछ हम खाते हैं वह पहले से कृत्रिम उर्वरक के बुरे प्रभाव से प्रभावित होता है, जिसके फलस्वरूप वह भोज्य पदार्थ हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करती है, रोग प्रतिरोधक क्षमता सुक्ष्म जीवों से होने वाले रोगों से लड़ने में शरीर को सहायता प्रदान करता हैं। इसलिए, हम में से कोई भी स्वस्थ और खुश होने के बाद भी कभी भी रोगग्रस्त हो सकता है। मानव जाति द्वारा शहरीकरण और औद्योगीकरण के आन्दोलन ने चिकित्सा, उद्योग तथा सामाजिक क्षेत्र को विकसित किया परन्तु प्राकृतिक परादृश्य को कंक्रीट ईमारतों तथा सड़कों में तबदील कर दिया। भोजन तथा पानी के लिए प्रकृति परादृश्यों पर हमारी निर्भरता इतनी अधिक है की हम इन संसाधनों की रक्षा किए बिना जीवित नहीं रह सकते हैं।

शहरीकरण, औद्योगीकरण तथा हमारा प्रकृति के प्रति बेरुखा व्यवहार इन सब कारणों के वजह से पर्यावरण प्रदूषण आज विश्व की प्रमुख समस्या है तथा इसका समाधान सम्पूर्ण मनुष्य जाति के निरंतर प्रयास से ही संभव है। हमें विश्व पर्यावरण दिवस के मुहिम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिए।

सभी प्रकार के प्राकृतिक तत्व जो पृथ्वी पर जीवों के जीवन को सम्भव बनाते हैं वह पर्यावरण के अन्तर्गत आते हैं जैसे- पानी, हवा, भूमि, प्रकाश, आग, जंगल, जानवर, पेड़ इत्यादि। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी ही एक मात्र ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन है तथा जीवन के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए, पर्यावरण है।

पर्यावरण का महत्व

विज्ञान के युग में मनुष्य के जीवन में इस तरह की कई तकनीक उत्पन्न हो चुकी है, जो दिन प्रति दिन जीवन की संभावनाओं को खतरे में डाल कर हमारे पर्यावरण को बर्बाद कर रही है। जिस तरह से प्राकृतिक हवा, जल, और मृदा दुषित हो रहे हैं, ऐसा लग रहा है कि यह एक दिन हमें बहुत हानि पहुंचा सकता है। यहाँ तक की इसने अपना बुरा प्रभाव मनुष्य, जानवर, पेड़ तथा अन्य जैविक प्राणी पर दिखाना शुरू भी कर दिया है। कृत्रिम रूप से तैयार खाद तथा हानिकारक रसायनों का उपयोग मिट्टी की उर्वरकता को नष्ट करता है, तथा हम जो रोज खाना खाते है उसके माध्यम से हमारे शरीर में एकत्र होता जाता है। औद्योगिक कम्पनीयों से निकलने वाला हानिकारक धुंआ हमारी वायुमंडल के हवा को प्रदुषित करती है जिससे हमारा स्वास्थय पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि हमेशा हम सांस के माध्यम से इसे ग्रहण करते हैं।

पर्यावरण के प्रति हमारी अहम जिम्मेवारियाँ

प्रदूषण में अत्यधिक वृद्धि हो प्राकृतिक स्त्रोत में तेजी से कमी का मुख्य कारण है, इससे न केवल जंगली जीवों और पेड़ों को नुकसान हुआ है बल्की इनके द्वारा संपूर्ण ईको सिस्टम भी बाधित हुआ है। आधुनिक जीवन के इस व्यस्तता में हमें कुछ बुरे आदतों को बदलना बेहद ही आवश्यक है जो हम दैनिक जीवन में करते हैं। यह सत्य है कि नष्ट होते पर्यावरण के लिए हमारे द्वारा किया गया छोटा प्रयास बड़ा सकारात्मक बदलाव कर सकता है। हमें अपने स्वार्थ की पूर्ति तथा विनाशकारी कामनाओं के लिए प्राकृतिक संसाधनों का निरंतर दोहन नहीं करना चाहिए।

हमें इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि आधुनिक तकनीक, पारिस्थितिकीय संतुलन को भविष्य में बरबाद  न कर सके। समय आ चुका है कि हम प्राकृतिक संसाधनों को बर्बादी को बंद करें और उनका विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करें। हमें हमारे जीवन को बेहतर बनाने के लिए विज्ञान तथा तकनीक को विकसित करना चाहिए पर हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए की यह वैज्ञानिक विकास भविष्य में पर्यावरण नुकसान न पहुचाए।

पृथ्वी के सभी जीव अपने जीवन चक्र को चलाने के लिए संतुलित पर्यावरण पर निर्भर करते हैं | संतुलित पर्यावरण से तात्पर्य एक ऐसे  पर्यावरण से है, जिसमें प्रत्येक घटक एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात में उपस्थित होता है | परंतु कभी-कभी मानवीय या अन्य कारणों से पर्यावरण में एक अथवा अनेक घटकों की मात्रा या तो आवश्यकता से बहुत अधिक बढ़ जाती है अथवा पर्यावरण में हानिकारक घटकों का प्रवेश हो जाता है। इस स्थिति में पर्यावरण दूषित हो जाता है तथा जीव समुदाय के लिए किसी न किसी रूप में हानिकारक सिद्ध होता है। पर्यावरण में इस अनचाहे परिवर्तन को ही ‘पर्यावरणीय प्रदूषण’ कहते हैं।

हमारा पर्यावरण धरती पर स्वस्थ जीवन को अस्तित्व में रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फिर भी हमारा पर्यावरण दिन-प्रतिदिन मानव निर्मित तकनीक तथा आधुनिक युग के आधुनिकरण के वजह से नष्ट होता जा रहा है। इसलिए आज हम पर्यावरण प्रदूषण जैसे सबसे बड़े समस्या का सामना कर रहे हैं।

सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, भावनात्मक तथा बौद्धिक रूप से पर्यावरण प्रदूषण हमारे दैनिक जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित करता जा रहा है। पर्यावरण प्रदूषण से वातावरण में विभिन्न प्रकार के बीमारीयों का जन्म हो रहा है, जिसे व्यक्ति जीवन भर झेलता रहता है। यह किसी समुदाय या शहर की समस्या नहीं है बल्कि दुनिया भर की समस्या है तथा इस समस्या का समाधान किसी एक व्यक्ति के प्रयास करने से नहीं होगा। अगर इसका निवारण पूर्ण तरीके से नहीं किया गया तो एक दिन पृथ्वी पर जीवन का कोई अस्तित्व नहीं रहेगा। प्रत्येक आम नागरिक को सरकार द्वारा आयोजित पर्यावरण आन्दोलन में शामिल होना चाहिए।

 

प्रदूषक पदार्थ क्या होते है?

प्रदूषक पदार्थ तीन प्रकार के होते हैं:

बायोडिग्रेडेबल या जैव निम्नीकरणीयप्रदूषक

जिन प्रदूषक पदार्थ का प्राकृतिक क्रियाओं से अपघटन होकर निम्नीकरण होता है, उन्हें बायोडिग्रेडेबल प्रदूषक कहते हैं। उदाहरणार्थ, घरेलू क्रियाओं से निकले जल-मल का अपघटन सूक्ष्मजीव करते हैं। इसी प्रकार मेटाबोलिक क्रियाओं के उपोत्पाद जैसे CO2 नाइट्रेट्स एवं तापीय प्रदूषण से निकली ऊष्मा आदि का उपचार प्रकृति में ही इस प्रकार से हो जाता है कि उनका प्रभाव प्रदूषक नहीं रह जाता।

नॉन-डिग्रेडेबल या अनिम्नीकरणीय प्रदूषक

ये प्रदूषक पदार्थ होते हैं जिनका प्रकृति में प्राकृतिक विधि से निम्नीकरण नहीं हो सकता। प्लास्टिक पदार्थ, अनेक रसायन, लम्बी शृंखला वाले डिटर्जेन्ट (long chain detergents) काँच, अल्युमिनियम एवं मनुष्य द्वारा निर्मित असंख्य कृत्रिम पदार्थ (synthetic material) इसी श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं। इनका हल दो प्रकार से हो सकता है- एक तो इनका पुनः उपयोग अर्थात पुनर्चक्रण (recycling) करने की तकनीकों का विकास तथा दूसरे इनकी अपेक्षा वैकल्पिक डिग्रेडेबल पदार्थों का उपयोग।

विषैले पदार्थ

इस श्रेणी में भारी धातुएँ (पारा, सीसा, कैडमियम आदि) धूमकारी गैसें, रेडियोधर्मी पदार्थ, कीटनाशक एवं ऐसे अनेक कृषि एवं औद्योगिक बहिःस्राव आते हैं जिनकी विषाक्तता के बारे में अभी जानकारी नहीं है। इस श्रेणी के अनेक प्रदूषकों का एक विशेष गुण होता है कि ये आहार-शृंखला में प्रवेश करने के पश्चात हर स्तर पर सांद्रित होते जाते हैं। इस श्रेणी के प्रदूषक वास्तव में मानव एवं अन्य जीवधारियों के स्वास्थ्य के लिये अत्यधिक हानिकारक हैं।

 

प्रदूषण के प्रकार

प्रदूषण के निम्न प्रकार हैं:

ये सभी प्रदूषण प्रदूषक या ध्वनि जैसे अन्य कारणों से उत्पन्न प्रदूषण मुख्य रूप से निम्न प्रकार के होते हैं-

  1. जल-प्रदूषण
  2. महानगरीय प्रदूषण
  3. वायु- प्रदूषण
  4. रेडियोधर्मी-प्रदूषण
  5. ध्वनि-प्रदूषण

आप सभी ने पाठ्यक्रमानुसार जल, वायु एवं मृदा-प्रदूषण का अवश्य ही अध्ययन किया होगा ।

पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण करना अब बहुत की अधिक आवश्यक हो गया है, जिसके लिए अब वैश्विक स्तर पर भी कदम उठाये जा रहे हैं। पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए सर्वप्रथम जनसँख्या वृद्धि पर नियंत्रण करना आवश्यक है क्योंकि जितनी अधिक जनसँख्या होगी मानव आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए उतनी ही अधिक प्राकृतिक संसाधनों का दुरूपयोग होगा। साथ ही वनों के कटाई पर रोक लगाते हुए वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना चाहिए। आम जनमानस को भी अपने तुच्छ से लाभ के लिए प्राकृति के महत्त्व को नजरअंदाज करते हुए कोई कार्य नहीं करना चाहिए। पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित बिन्दु महत्पूर्ण हैं :

  • वनों की कटाई रोकना चाहिए एवं वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना चाहिए साथ ही वृक्षों की संख्या अधिक होने से होने वाले लाभ के विषय में लोगों को जागरूक करना चाहिए।
  • खाद्य उत्पादन में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कम करके जैवक उर्वरकों के प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए।
  • बढ़ती मानव जनसँख्या के नियंत्रण के लिए प्रयास करना चाहिए।
  • कारखानों के चिमनियों में फ़िल्टर लगाना चाहिए एवं चिमनियों को अधिक ऊंचाई पर रखना चाहिए।
  • कारखानों द्वारा निकलने वाले जल को कृत्रिम तालाबों में रासायनिक विधि द्वारा उपचारित करने के उपरांत नदियों में छोड़ना चाहिए।
  • नियंत्रित ध्वनि वाले मशीन उपकरणों के निर्माण एवं उनके ही उपयोग पर जोर देना चाहिए एवं उद्योग धंधों  को हमेशा शहरों या आबादी वाले स्थान से दूर स्थापित करना चाहिए।
  • परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए।
  • हमें सिंगल यूज़ प्लास्टिक एवं अन्य प्लास्टिक के उपयोग को रोकना चाहिए एवं पर्यावरण के अनुकूल वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए।
  • घरेलू एवं औद्योगिक अपशिष्ट का समुचित निस्तारण करना चाहिए।
  • नवीकरणीय ऊर्जा के श्रोत के प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए।
  • वर्षाजल को संचित करके उसका पुनः उपयोग कर भूमिगत जल को संरक्षित किया जा सकता है।

भौतिकता के इस दौर में मनुष्य निज स्वार्थ के लिए पर्यावरण की अनदेखी करके सम्पूर्ण जीवधारियों के जीवन को खतरे में झोकता जा रहा है। औद्योगीकरण, शहरीकरण, कल-कारखानों, परमाणु परीक्षणों आदि के कारण आज पूरा पर्यावरण प्रदूषण से ग्रषित है। पर्यावरण की सुरक्षा हम सबकी सबसे बड़ी चुनौती है। इसलिए हमें निःस्वार्थ होकर पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को ख़त्म करने के लिए आगे आना होगा। हमें प्रत्येक कार्य करने से पहले पर्यावरण के अनुकूलता का ध्यान रखना होगा। जब पर्यावरण स्वच्छ रहेगा तभी मनुष्य स्वस्थ्य रहेगा।

पर्यावरण सुरक्षा के निम्न उपाय

धरती पर रहने वाले सभी व्यक्ति द्वारा उठाए गए छोटे – बड़े कदमों के माध्यम से हम बहुत ही आसान तरीके से पर्यावरण को सुरक्षित कर सकते हैं। हमें अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा में कमी करनी चाहिए तथा अपशिष्ट पदार्थ को वहीं फेंकना चाहिए जहां उसका स्थान है। प्लास्टिक बैग की जगह पेपर तथा कपड़े के बैग का उपयोग करना चाहिए तथा सारी पुरानी चीजों को फेकने के बजाय कुछ चीजों को नये तरीके से उनका उपयोग करना चाहिए।

किस प्रकार से हम पुराने चीजों को दुबारा रियूज कर सकते हैं?

जो चार्जेबल हैं, जिन्हें दुबारा चार्ज किया जा सकता है उन बैटरी या अक्षय क्षारीय बैटरी का उपयोग करें, प्रतिदीप्त प्रकाश का निर्माण कर,

बारिश के पानी का संरक्षण कर, पानी की अपव्यय को कम कर, ऊर्जा संरक्षण कर तथा बिजली की खपत कम करके, हम पर्यावरण के वास्तविकता को बनाए रखने के मुहिम की ओर एक कदम बढ़ा सकते है।

कोयला आधारित विद्युत केंद्रों से प्रदूषण से संबंधित चिंता तथा बड़े पैमाने पर उसके राख के निपटान, जोकि भारत के विद्युत उत्पादन का प्रमुख आधार है, पर्यावरणीय रूप से सतत् विद्युत विकास प्रोत्साहित करने वाली कार्यनीतियों के माध्यम से इस समस्या के समाधान का कोशिश किया जा रहा है।

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