परिश्रम का महत्व anuched हिंदी में 1000 words [ parishram ka mahatva nibandh ]

मनुष्य के जीवन की सफलता की कुंजी सिर्फ-और-सिर्फ परिश्रम ही है, इसलिए मनुष्य को हर क्षण परिश्रम की आवश्यकता होती है। खाना भी मुँह में अपने-आप नहीं चला जाता, उसे भी चबाना पड़ता है। लेकिन जो व्यक्ति कोई भी कार्य करना ही नहीं चाहता, ऐसा आलसी, अनुद्योगी तथा अकर्मण्य व्यक्ति कहीं भी सफलता नहीं पा सकता। उसी मानव का जीवन सार्थक माना जाता है, जो अपने तथा अपने राष्ट्र के उत्थान हेतु परिश्रम करता है। अनेक संघर्षों तथा उद्यमों के पश्चात् ही सफलता मनुष्य के कदम चूमती है, तभी तो किसी विद्वान ने कहा भी है कि-

“उद्यमेन ही सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।

न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।”

अर्थात् उद्योग से ही मनुष्य को अपने कार्य में सिद्धि मिलती है केवल सपने देखते रहने मात्र से कुछ भी नहीं होता है। सोते हुए सिंह के मुँह में हिरण अपने आप नहीं घुस जाता है। लक्ष्मी भी आलसी मनुष्यों से दूर भागती है। भाग्यवादी व निराश व्यक्ति के लिए सांसारिक सुख पाना बेहद दुर्लभ है। यदि किसी मनुष्य को संसार में सम्पूर्ण आनन्द की तलाश है, तो उसे परिश्रम तो करना ही पड़ेगा। परिश्रम करने से हमारी शक्ति क्षीण नहीं होती है, वरन् हमारी शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक शक्तियों में भी तीव्रता आती है तथा जीवन भी आत्म-विश्वास से परिपूर्ण हो जाता है। परिश्रम ही तो सफलता का प्रमुख रहस्य, पराक्रम का सार एवं उन्नति का प्रथम अध्याय है।

मनुष्य के जीवन में परिश्रम का बहुत महत्व होता है। इस संसार में कोई भी प्राणी काम किये बिना नहीं रह सकता है। प्रकृति के कण-कण बने हुए नियमों से अपना-अपना काम करता है। चींटी का जीवन भी परिश्रम से ही पूर्ण होता है। मनुष्य परिश्रम करके अपने जीवन की हर समस्या से छुटकारा पा सकता है| सूर्य हर रोज निकलकर विश्व का उपकार करता है। इतिहास भी इस बात का साक्षी है कि जो इंसान अधिक परिश्रम करता है। वह जिंदगी में सब कुछ पा सकता है उसके लिए कोई भी सीमा बाधित नहीं है।

देखा जाए तो परीक्षण को कुछ ही शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता है क्योंकि किसी व्यक्ति के जीवन में परिश्रम है अर्थात वह परिश्रम करने से नहीं डरता तो उसके लिए कोई भी काम असंभव नहीं है। वह हर असंभव काम को संभव बना सकता है। इसीलिए कहा जाता है कि दुनिया में कोई भी काम असंभव नहीं है। जरूरी है तो हमारा परिश्रम करना।

 

परिश्रम का महत्व anuched हिंदी में 1000 words [ parishram ka mahatva nibandh ]

जीवन में परिश्रम की महत्ता से भला कौन इंकार कर सकता है। परिश्रम में तो वह ताकत होती है जो निर्धन को धनी, रंक को राजा बना दे। परिश्रमी व्यक्ति अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता रहता है तथा कोई भी बाधा उसके रास्ते में काँटे नहीं विछा पाती। सफलता भी उधमी व्यक्ति का ही वरण करती है तथा आलसी व्यक्ति से दूर भागती है। श्रम साधक व्यक्ति अपनी कठिन तपसाधना के द्वारा मनोवांछित यश तथा वैभव को प्राप्त करके अपने आस-पास के समाज को सत्प्रेरित करता है। एक निर्धन छात्र भी अपने परिश्रम के बल पर ही परीक्षा में अव्वल स्थान तो प्राप्त करता ही है, साथ ही उच्चपद पर पहुँचकर अपने परिवार तथा समाज के मस्तक को भी ऊँचा करके सबके लिए आदर्श बनता है। सच्चा परिश्रमी यदि असफल भी हो जाए, तो उसे पश्चाताप नहीं होता, वरन् उसके मन में तो इस बात का सन्तोष रहता है कि उसने अपनी सामर्थ्य अनुसार मेहनत तो की है, अब फल देना तो ईश्वर की इच्छा पर निर्भर करता है।

परिश्रम के लाभ

परिश्रम करने से आत्मिक शान्ति प्राप्त होती है, हृदय पवित्र होता है, सच्चे ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है तथा मनुष्य उन्नति की पराकाष्ठा पर पहुँचता है। हमारा इतिहास उद्यमी लोगों की सफलता के गुणगानों से भरा पड़ा है। अमेरिका तथा जापान जैसे देशो की सफलता का रहस्य उनके द्वारा किया जाने वाला अनवरत परिश्रम ही है।

परिश्रम करने से मनुष्य के अन्तः करण की शुद्धि होती है तथा सांसारिक दुर्बलताएँ तथा वासनाएँ उसे नहीं सताती। परिश्रमी व्यक्ति को यश तथा धन दोनों मिलते हैं। यदि शारीरिक श्रम करने वाला व्यक्ति शारीरिक तौर पर चुस्त-तन्दुरुस्त रहता है तो मानसिक श्रम करने वाला व्यक्ति भी पीछे नहीं रहता। बीमारी ऐसे व्यक्तियों के पास भी नहीं भटकती।

परिश्रम से मनुष्य के जीवन में अनेक लाभ होते हैं। जब मनुष्य जीवन में परिश्रम करता है तो उसका जीवन गंगा के जल की तरह पवित्र हो जाता है। जो मनुष्य परिश्रम करता है उसके मन से वासनाएं और अन्य प्रकार की दूषित भावनाएँ खत्म हो जाती हैं। जो व्यक्ति परिश्रम करते हैं उनके पास किसी भी तरह की बेकार की बातों के लिए समय नहीं होता है। जिस व्यक्ति में परिश्रम करने की आदत होती है उनका शरीर हष्ट-पुष्ट रहता है। परिश्रम करने से मनुष्य का शरीर रोगों से मुक्त रहता है।

परिश्रम करने से जीवन में विजय और धन दोनों ही मिलते हैं। अक्सर ऐसे लोगों को देखा गया है जो भाग्य पर निर्भर नहीं रहते हैं और थोड़े से धन से काम करना शुरू करते हैं और कहाँ-से-कहाँ पर पहुंच जाते है। जिन लोगों के पास थोडा धन हुआ करता था वे अपने परिश्रम से धनवान बन जाते हैं। जो व्यक्ति परिश्रमी होते हैं उन्हें जीवित रहते हुए भी यश मिलता है और मरने के बाद भी। परिश्रमी व्यक्ति ही अपने राष्ट्र और देश को ऊँचा उठा सकता है। जिस देश के लोग परिश्रमी होते है वही देश उन्नति कर सकता है। जिस देश के नागरिक आलसी और भाग्य पर निर्भर होते हैं वह देश किसी भी शक्तिशाली देश का आसानी से गुलाम बन जाता है।

परिश्रमियों के सच्चे उदाहरण

संसार में अनेक ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने कठिन परिश्रम द्वारा अपने जीवन को उज्जवल बनाया है। बाबर, शेरशाह, नेपोलियन, सिकन्दर आदि सभी प्रारम्भ में सामान्य व्यक्ति ही थे, लेकिन असाधारण तो वे अपने कार्यों के कारण बने थे। कोलम्बस ने अपने कठोर तथा अथक परिश्रम के बल पर अमेरिका की खोज की थी। शिवाजी की सफलता का रहस्य उनकी घोर परिश्रमशीलता ही थी, जबकि उनका पुत्र सम्भाजी आलस्य के कारण ही असफल हुआ था। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, नेताजी सुभाषचन्द बोस, महात्मा गाँधी, तिलक, भगत सिंह, हिटलर, अब्राहिम लिंकन, गोखले आदि न जाने कितने नाम मेहनत के बल पर ही यश की पराकाष्ठा को छू पाए थे। बड़े-बड़े धनाढ्य जैसे रिलायंस ग्रुप, टाटा, बिडला आदि ने रातों की नींद तथा दिन का चैन खोकर ही इतनी सफलता प्राप्त की है। रूस, इंग्लैण्ड, अमेरिका, जापान, जर्मनी जैसे देश आज श्रम के कारण ही शिखर पर हैं। मनुष्य की चन्द्रमा सहित अन्य ग्रहों की यात्रा के मूल में उसके निरन्तर परिश्रम की ही सुगन्ध हैं। कठिन तथा अथक परिश्रम के बल पर ही आज मनुष्य ने अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों से विश्व-निर्माता ब्रह्मा का स्थान पा लिया है।

परिश्रम और भाग्य

कुछ लोग परिश्रम की जगह भाग्य को अधिक महत्व देते हैं। ऐसे लोग केवल भाग्य पर ही निर्भर होते हैं। वे भाग्य के सहारे जीवन जीते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता है कि भाग्य जीवन में आलस्य को जन्म देता है और आलस्य जीवन मनुष्य के लिए एक अभिशाप की तरह होता है। वे लोग यह समझते हैं कि जो हमारे भाग्य में होगा वह हमें अवश्य मिलेगा। वे परिश्रम करना व्यर्थ समझते हैं।

भाग्य का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है लेकिन आलसी बनकर बैठे हुए असफलता के लिए भगवान को कोसना ठीक बात नहीं है। आलसी व्यक्ति हमेशा दूसरों के भरोसे पर जीवन यापन करता है। वह अपने हर काम को भाग्य पर छोड़ देता है। हमारे इसी भाव की वजह से भारत देश ने कई वर्षों तक गुलामी की थी। परिश्रम से कोई भी मनुष्य अपने भाग्य को भी बदल सकता है।

जो व्यक्ति आलसी होते हैं वे केवल भगवान के लिखे हुए पर आश्रित होते हैं। हम सभी के मन में हीनता की भावना पैदा हो गई है लेकिन जैसे-जैसे हमने परिश्रम के महत्व को समझा तो हमने पराधीनता की बेड़ियों को तोडकर स्वतंत्रता की ज्योति जलाई थी। कायर व्यक्ति हमेशा कहते रहते हैं कि हमें भगवान देगा। अगर परिश्रम करने के बाद भी हमें सफलता नहीं मिलती है तो हमे इस पर विचार करना चाहिए कि हमारे परिश्रम में क्या कमी थी।

कविवर सुमित्रानन्दन ने तो चींटी को ही श्रम का प्रतीक माना है-“दिन भर में वह मीलो चलती, अथक कार्य से कभी न हटती।” यदि मनुष्य चींटी की ही भाँति जीवन में परिश्रम के महत्त्व को समझे तो कर्म में हमारी आस्था और भी दृढ़ हो जाती है।

परिश्रम ही सम्पूर्ण जीवन का सार है। इसके बिना मानव एक लाश की तरह होता है। तुलसीदास जी ने कहा भी है-

“सकल पदारथ है जग माहीं, 

कर्महीन नर पावत ना हीं।”

अर्थात् इस संसार में दुनिया भर के पदार्थ(चीजें) हैं, लेकिन सिर्फ कर्म करने वाला व्यक्ति ही उन्हें प्राप्त कर सकता है। जब प्रकृति ही हर समय अपने कार्य में तत्पर रहती है, जब सूर्य, चन्द्रमा, तारे निस्वार्थ भाव से हमारी सेवा करते रहते हैं, तो फिर हम तो मानव हैं, हमें तो और भी अधिक परिश्रम करना चाहिए। ईश्वर भी परिश्रमी का ही साथ देता है, उसी से स्नेह करता है। परिश्रम ही तो ईश्वर की सच्ची साधना है, जिससे यह लोक और परलोक दोनों सुधर जाते हैं तभी तो किसी ने कहा भी है-

“आलस्यो हि मनुष्याणां शरीरस्यो महान रिपुः।”

अर्थात् आलस्य ही मनुष्य के शरीर का सबसे बड़ा दुश्मन है।

 

आलस्य से हानियाँ

आलस ही असफलता का कारण होता है, जो व्यक्ति आलसी हो जाता है उसका विकास रुक जाता है और सफलता पाना उसके लिए नमुमकिन हो जाता हैl जबकि परिश्रमी व्यक्ति जीवन में आगे बढ़ता हैl विद्यार्थी को परिश्रम करना चाहिए जिससे वह परीक्षा में सफल होकर जीवन में भी सफल हो सके।

इस प्रकार परिश्रम का हमारे जीवन में एक विशेष महत्व है इसके बिना जीवन की कल्पना करना मुश्किल है l मजदूर भी परिश्रम से ही संसार के लिए उपयोगी वस्तुओं का निर्माण करता है, कवि और लेखकों ने परिश्रम के बल पर अपनी रचनाओं से देश को मंत्रमुग्ध किया है।

परिश्रम की आवश्यकता 

जीवन में सफलता की कुंजी परिश्रम ही है, इसलिए हर क्षण हमें परिश्रम की आवश्यकता होती है। खाना भी मुँह में स्वयं नहीं चला जाता, चबाना पड़ता है। लेकिन जो व्यक्ति कोई भी कार्य करना ही नहीं चाहता, ऐसा आलसी, अनुद्योगी तथा अकर्मण्य व्यक्ति कहीं भी सफलता नहीं पा सकता। उसी मानव का जीवन सार्थक माना जा सकता है, जिसने अपने तथा अपने राष्ट्र के उत्थान हेतु परिश्रम किया हो। अनेक संघर्षों तथा उद्यमों के पश्चात् ही सफलता मनुष्य के कदम चूमती है।

परिश्रम का वास्तविक स्वरूप 

किसी को अपने जीवन में कब परिश्रम करना चाहिए? इसका सही समय क्या होना चाहिए? इत्यादि उलझनों में हम घेरे रहते हैं। परिश्रम का वास्तविक स्वरूप यह है कि हमें बिना फल के कर्म करते रहना चाहिए।

भगवान कृष्ण ने भी गीता में यही कहा था कि कर्म करते रहो फल की इच्छा ना करो। अगर आपको कुछ भी चाहिए तो आप उसके लिए परिश्रम करते रहिए। कभी ना कभी वह आपको जरूर हासिल होगा।

परिश्रम की विजय 

किसी भी तरह से परिश्रम की ही विजय होती है। संस्कृत में एक उक्ति है – सत्यमेव जयते। इसका अर्थ ही होता है परिश्रम की विजय होती है। मनुष्य मानव प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ प्राणी होते है। मनुष्य खुद ही भगवान का स्वरूप माना जाता है। जब मनुष्य परिश्रम करते हैं तो उनका जीवन उन्नति और विकास की तरफ अग्रसर होता है लेकिन उन्नति और विकास के लिए मनुष्य को उद्यम की जरूरत पडती है। उद्यम से ही मनुष्य अपने कार्य को सिद्ध करता है वह केवल इच्छा से अपने कार्य को सिद्ध नहीं कर सकते है।

जिस तरह से बिल्ली के मुंह में चूहे खुद ही आकर नहीं बैठते है उसी तरह से मनुष्य के पास बिना परिश्रम के उन्नति और विकास खुद ही नहीं हो जाते हैं। परिश्रम के बिना कभी भी मनुष्य का काम सफल नहीं हो सकता है। जब मनुष्य किसी काम को करने के लिए परिश्रम करता है तभी मनुष्य को सफलता मिलती है। मनुष्य कर्म करके अपना भाग्य खुद बनाता है। जो व्यक्ति कर्मशील और परिश्रमी होता है केवल वही अपने जीवन में आने वाली बाधाओं और कठिनाईयों पर परिश्रम से विजय प्राप्त कर सकता है।

 

महापुरुषों के उदाहरण 

हमारे सामने अनेक ऐसे महापुरुषों के उदाहरण हैं जिन्होंने अपने परिश्रम के बल पर अनेक असंभव से संभव काम किये थे। उन्होंने अपने राष्ट्र और देश का ही नहीं बल्कि पूरे विश्व का नाम रोशन किया था। अब्राहिम लिकंन जी एक गरीब मजदूर परिवार में हुए थे बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया था लेकिन फिर भी वे अपने परिश्रम के बल पर एक झोंपड़ी से निकलकर अमेरिका के राष्ट्रपति भवन तक पहुंच गये थे।

बहुत से ऐसे महापुरुष थे जो परिश्रम के महत्व को अच्छी तरह से समझते हैं। लाल बहादुर शास्त्री, महात्मा गाँधी और सुभाष चन्द्र जैसे महापुरुषों ने अपने परिश्रम के बल पर भारत को स्वतंत्र कराया था। डॉ सर्वपल्ली राधा कृष्ण जी अपने परिश्रम के बल पर ही राष्ट्रपति बने थे। ये सभी अपने परिश्रम से ही महान व्यक्ति बने थे।

जो व्यक्ति परिश्रमी होते हैं वे चरित्रवान, ईमानदार, परिश्रमी, और स्वावलम्बी होते हैं। अगर हम अपने जीवन की, अपने देश और राष्ट्र की उन्नति चाहते हैं तो आपको भाग्य पर निर्भर रहना छोडकर परिश्रमी बनना होगा। जो व्यक्ति परिश्रम करता है उसका स्वास्थ्य भी ठीक रहता है।

आज के देश में जो बेरोजगारी इतनी तेजी से फैल रही है उसका एक कारण आलस्य भी है। बेरोजगारी को दूर करने के लिए परिश्रम एक बहुत ही अच्छा साधन है। मनुष्य परिश्रम करने की आदत बचपन या विद्यार्थी जीवन से ही डाल लेनी चाहिए। परिश्रम से ही किसान जमीन से सोना निकालता है। परिश्रम ही किसी भी देश की उन्नति का रहस्य होता है।

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