समास के कितने भेद होते हैं? | Samas ke kitne bhed hote hain?

किसी शब्द ( word ) को दो भाग में करने को समास कहते हैं। दूसरे शब्दों में समास शब्दों को छोटा करने की एक प्रक्रिया है। दो या दो से अधिक शब्दों का आपस में सम्बन्ध ( relation ) बताने वाले शब्दों अथवा कारक चिह्नों के ख़तम  होने पर उन दो अथवा दो से अधिक शब्दों के मिलने से बने एक नए, सार्थक और स्वतन्त्र शब्द को समास (samas) हैं। समास के नियमों से बने शब्द सामासिक शब्द कहलाते है। समास की परिभाषा भेद और उदाहरण सहित संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।

 

समास की परिभाषा

दो या दो से अधिक शब्द से मिलकर बने शब्द को समास कहा जाता है । समास का मतलब  संक्षिप्तीकरण होता है ।

सामासिक शब्द किन्हे कहते हैं?

जो शब्द समास के नियमों से निर्मित किए जाते हैं उन्हें हम सामासिक शब्द कहते हैं। इन्हें समस्तपद भी कहा जाता है।

समास विग्रह क्या होता है?

सामासिक शब्दों के बीच के संबंध को स्पष्ट करना समास विग्रह कहा जाता है।

उदाहरण के लिए

गंगाजल = गंगा का जल।

पूर्वपद और उत्तरप्रद

किसी भी समाज में दो ही पद देखने को मिलते हैं। पहले पद को पूर्व पद कहा जाता हैं और दूसरे पद को हम उत्तर पद कहते हैं ।

उदाहरण के लिए:

जैसे कि -राजपुत्र, इसमें राजा पूर्वपद है और पुत्र उत्तरपद है।

  • ‘दया का सागर’ का सामासिक शब्द बनता है -‘दयासागर’।

इस उदाहरण में ‘दया’ और ‘सागर’, इन दो शब्दों का आपस में सम्बन्ध बताने वाले शब्द ‘का’ को हटा दिया गया है तथा एक नया व् एक स्वतन्त्र शब्द बना ‘दयासागर’।

  • रसोईघर – रसोई के लिए घर।

इस उदाहरण में ‘रसोई ’ और ‘घर ’, इन दो शब्दों का आपस में सम्बन्ध (relation ) बताने वाले शब्द  ‘के लिए ’ को हटा दिया गया है तथा एक नया व् एक स्वतन्त्र शब्द बना ‘रसोईघर ’।

  • नीलगाय – नीले रंग की गाय।

 

समास के कितने भेद होते हैं? | Samas ke kitne bhed hote hain?

अब तक आप यह बात समझ ही गए होंगे की समास दो शब्दों को जोड़कर बने तीसरे शब्द का नाम होता है।  अब हम आपको समास के भेदों के बारे में बताते हैं। हिंदी में समास के छ: भेद होते हैं:

  1. द्वन्द्व समास ( dvandva samas )
  2. द्विगु समास ( dvigu samas)
  3. तत्पुरुष समास ( tatpurusha samas)
  4. कर्मधारय समास ( karmadharaya samas)
  5. अव्ययीभाव समास ( avyayibhav samas)
  6. बहुव्रीहि समास ( bahuvrihi samas )

अब हम आपको इन सबके बारे में विस्तार से बताते हैं।

द्वन्द्व समास (dvandva samas)

जिस समास में पूर्वपद (पहला शब्द ) और उत्तरपद (बाद वाला शब्द ) दोनों ही मुख्य  हों अर्थात दोनों ही पद प्रधान हो, और उनके मध्य संयोजक शब्द का लोप हो तो वह द्वन्द्व समास कहलाता है।

इसके तीन भेद हैं:

  1. इत्येत्तर द्वंद
  2. समाहार द्वंद
  3. वैकल्पिक द्वंद

द्वंद्व समास के कुछ उदाहरण:

  • नदी – नाले = नदी और नाले
  • धन – दौलत = धन दौलत
  • मार-पीट = मारपीट
  • आग – पानी = आग और पानी
  • गुण – दोष = गुण और दोष
  • पाप – पुण्य = पाप या पुण्य
  • ऊंच – नीच = ऊंच या नीचे
  • आगे – पीछे = आगे और पीछे
  • देश – विदेश = देश और विदेश
  • सुख – दुख = सुख और दु
  • पाप-पुण्य = पाप व पुण्य
  • सीता-राम = सीता व राम
  • माता-पिता = माता व पिता
  • राम-कृष्ण = राम व कृष्ण
  • भाई-बहन = भाई व बहन
  • सुख-दुःख = सुख व दुःख

द्विगु समास (dvigu samas)

जिस समास में पूर्वपद (पहला शब्द ) संख्यावाचक हो, अर्थात उसमे कोई नंबर आता हो , तो वह द्विगु समास कहलाता है।

उदाहरण:

  • नवरत्न – नौ रत्नों का समूह
  • अष्टाध्यायी – आठ अध्यायों का समूह
  • दोपहर – दूसरा पहर
  • त्रिलोक – तीनो लोकों का समाहार
  • सप्तदीप – सात दीपों का समूह
  • सतमंजिल – सात मंजिलों का समूह
  • त्रिभुवन – तीन भुवनों का समूह
  • पंचवटी – पांच वृक्षों का समूह
  • पंचतत्व – पांच तत्वों का समूह

तत्पुरुष समास (tatpurusha samas)

जिस समास में पूर्वपद (पहला शब्द ) गौण तथा उत्तरपद (बाद वाला शब्द ) प्रधान हो, वह तत्पुरुष समास कहलाता है। दोनों पदों के बीच परसर्ग का लोप हो जाता  है। परसर्ग लोप के आधार पर तत्पुरुष समास के छ: भेद हैं जैसे की -कर्म तत्पुरुष समास, करण तत्पुरुष समास, सम्प्रदान तत्पुरुष समास, अपादान तत्पुरुष समास, सम्बन्ध तत्पुरुष समास, अधिकरण तत्पुरुष समास ।

उदाहरण:

  • मुंहतोड़ – मुंह को तोड़ने वाला
  • हथकड़ी – हाथों के लिए कड़ी
  • विद्यालय – विद्या के लिए आलय
  • राजपुत्र – राजा का पुत्र
  • चिड़ीमार – चिड़िया को मारने वाला
  • जन्मांध – जन्म से अँधा

तत्पुरुष समास के छः भेद हैं जिनकी नाम हैं:

  1. कर्म तत्पुरुष
  2. करण तत्पुरुष
  3. संप्रदान तत्पुरुष
  4. अपादान तत्पुरुष
  5. संबंध तत्पुरुष
  6. अधिकरण तत्पुरुष

तत्पुरुष समास में दोनों शब्दों के बीच का कारक चिन्ह लुप्त हो जाता है। उदाहरण:

  • राजा का कुमार = राजकुमार
  • धर्म का ग्रंथ = धर्मग्रंथ
  • रचना को करने वाला = रचनाकार

कर्म तत्पुरुष

इसमें कर्म कारक की विभक्ति ‘को’ का लोप हो जाता है।

उदाहरण के लिए:

  • सर्वभक्षी – सब का भक्षण करने वाला
  • यशप्राप्त – यश को प्राप्त
  • मनोहर – मन को हरने वाला
  • गिरिधर – गिरी को धारण करने वाला
  • कठफोड़वा – कांठ को फ़ोड़ने वाला
  • माखनचोर – माखन को चुराने वाला।
  • शत्रुघ्न – शत्रु को मारने वाला
  • गृहागत – गृह को आगत
  • मुंहतोड़ – मुंह को तोड़ने वाला
  • कुंभकार – कुंभ को बनाने वाला

करण तत्पुरुष

इसमें करण कारक की विभक्ति ‘से’ , ‘के’ , ‘द्वारा’ का लोप हो जाता है। जैसे – रेखा की , रेखा से अंकित।

अन्य उदाहरण:

  • सूररचित – सूर द्वारा रचित
  • तुलसीकृत – तुलसी द्वारा रचित
  • शोकग्रस्त – शोक से ग्रस्त
  • पर्णकुटीर – पर्ण से बनी कुटीर
  • रोगातुर – रोग से आतुर
  • अकाल पीड़ित – अकाल से पीड़ित
  • कर्मवीर – कर्म से वीर
  • रक्तरंजित – रक्त से रंजीत
  • जलाभिषेक – जल से अभिषेक
  • करुणा पूर्ण – करुणा से पूर्ण
  • रोगग्रस्त – रोग से ग्रस्त
  • मदांध – मद से अंधा
  • गुणयुक्त – गुणों से युक्त

संप्रदान तत्पुरुष

इसमें संप्रदान कारक की विभक्ति ‘ के लिए ‘ लुप्त हो जाती है।

उदाहरण के लिए:

रसोईघर – रसोई के लिए घर

  • सत्याग्रह – सत्य के लिए आग्रह
  • हथकड़ी – हाथ के लिए कड़ी
  • देशभक्ति – देश के लिए भक्ति
  • धर्मशाला – धर्म के लिए शाला
  • पुस्तकालय – पुस्तक के लिए आलय
  • देवालय – देव के लिए आलय
  • भिक्षाटन – भिक्षा के लिए ब्राह्मण
  • राहखर्च – राह के लिए खर्च
  • विद्यालय – विद्या के लिए आलय
  • विधानसभा – विधान के लिए सभा
  • स्नानघर – स्नान के लिए घर
  • डाकगाड़ी – डाक के लिए गाड़ी
  • परीक्षा भवन – परीक्षा के लिए भवन
  • प्रयोगशाला – प्रयोग के लिए शाला

अपादान तत्पुरुष

इसमें अपादान कारक की विभक्ति ‘से’ लुप्त हो जाती है।

उदाहरण के लिए:

  • जन्मांध – जन्म से अंधा
  • कर्महीन – कर्म से हीन
  • वनरहित – वन से रहित
  • अन्नहीन – अन्न से हीन
  • जातिभ्रष्ट – जाति से भ्रष्ट
  • नेत्रहीन – नेत्र से हीन
  • देशनिकाला – देश से निकाला
  • जलहीन – जल से हीन
  • गुणहीन – गुण से हीन
  • धनहीन – धन से हीन
  • स्वादरहित – स्वाद से रहित
  • ऋणमुक्त – ऋण से मुक्त
  • पापमुक्त – पाप से मुक्त

संबंध तत्पुरुष

इसमें संबंध कारक की विभक्ति ‘का’ , ‘के’ , ‘की’ लुप्त हो जाती है।

उदाहरण के लिए:

  • चरित्रहीन – चरित्र से हीन
  • कार्यकर्ता – कार्य का करता
  • विद्याभ्यास – विद्या अभ्यास
  • सेनापति – सेना का पति
  • कन्यादान – कन्या का दान
  • गंगाजल – गंगा का जल
  • गोपाल – गो का पालक
  • गृहस्वामी – गृह का स्वामी
  • राजकुमार – राजा का कुमार
  • पराधीन – पर के अधीन
  • आनंदाश्रम – आनंद का आश्रम
  • राजपूत्र – राजा का पुत्र
  • विद्यासागर – विद्या का सागर
  • राजाज्ञा – राजा की आज्ञा

अधिकरण तत्पुरुष

इसमें अधिकरण कारक की विभक्ति ‘ में ‘ , ‘ पर ‘ लुप्त हो जाती है।

उदाहरण के लिए:

  • रणधीर – रण में धीर
  • क्षणभंगुर – क्षण में भंगुर
  • पुरुषोत्तम – पुरुषों में उत्तम
  • आपबीती – आप पर बीती
  • लोकप्रिय – लोक में प्रिय
  • कविश्रेष्ठ – कवियों में श्रेष्ठ
  • कृषिप्रधान – कृषि में प्रधान
  • शरणागत – शरण में आगत
  • कलाप्रवीण – कला में प्रवीण
  • युधिष्ठिर – युद्ध में स्थिर
  • कलाश्रेष्ठ – कला में श्रेष्ठ
  • आनंदमग्न – आनंद में मग्न
  • गृहप्रवेश – गृह में प्रवेश
  • आत्मनिर्भर – आत्म पर निर्भर
  • शोकमग्न – शोक में मगन
  • धर्मवीर – धर्म में वीर

कर्मधारय समास (karmadharaya samas)

जिस समास में पूर्वपद (पहला शब्द ) विशेषण, और उत्तरपद (बाद वाला शब्द ) विशेष्य हो, कर्मधारय समास कहलाता है। इसमें भी उत्तरपद प्रधान होता है ।

कर्मधारय समास चार प्रकार के होते हैं:

  1. विशेषण पूर्वपद
  2. विशेष्य पूर्वपद
  3. विशेषणोभय पद तथा
  4. विशेष्योभय पद

कर्मधारय की पहचान

आसानी से समझे तो जिस समस्त पद का उत्तर पद प्रधान हो तथा पूर्वपद व उत्तरपद में उपमान – उपमेय तथा विशेषण -विशेष्य संबंध हो कर्मधारय समास कहलाता है। पहला व बाद का पद दोनों प्रधान हो और उपमान – उपमेय या विशेषण विशेष्य से संबंध हो

उदाहरण:

  • चन्द्रमुखी – चन्द्र के समान मुख वाली
  • कालीमिर्च – काली है जो मिर्च
  • चन्द्रमुख – जिसका चन्द्रमा के सामान मुख हो
  • गुरुदेव – गुरु रूपी देव
  • नीलकमल – नीला है जो कमल
  • पीताम्बर – पीत (पीला) है जो अम्बर
  • सद्गुण – सद् हैं जो गुण

अव्ययीभाव समास (avyayibhav samas)

जिस समास में पूर्वपद अव्यय हो, अव्ययीभाव समास कहलाता है। इसमें पहला पद उपसर्ग होता है जैसे अ, आ, अनु, प्रति, हर, भर, नि, निर, यथा, यावत आदि होते हैं। यह वाक्य में क्रिया विशेषण का काम करता है।

उदाहरण:

  • प्रतिदिन – प्रत्येक दिन ( इसमें “प्रति” उपसर्ग है )
  • यथावधि – अवधि के अनुसार ( इसमें “यथा” उपसर्ग है )
  • यथास्थान – स्थान के अनुसार ( इसमें “यथा” उपसर्ग है )
  • यथाक्रम – क्रम के अनुसार ( इसमें “यथा” उपसर्ग है )
  • आजीवन – जीवन-भर ( इसमें “आ” उपसर्ग है )
  • आजन्म – जन्म पर्यन्त ( इसमें “आ” उपसर्ग है )
  • यथासमय – समय के अनुसार ( इसमें “यथा” उपसर्ग है )

अन्य उदाहरण:

  • आ + जन्म   = आजन्म
  • प्रति + दिन  = प्रतिदिन
  • यथा + संभव   = यथासंभव
  • अनु + रूप   = अनुरूप।
  • पेट + भर   = भरपेट
  • आजन्म   – जन्म से लेकर
  • यथास्थान  – स्थान के अनुसार
  • आमरण   –  मृत्यु तक
  • अभूतपूर्व  –  जो पहले नहीं हुआ
  • निर्भय   – बिना भय के
  • निर्विवाद   – बिना विवाद के
  • निर्विकार  – बिना विकार के
  • प्रतिपल  – हर पल
  • अनुकूल   – मन के अनुसार

बहुव्रीहि समास (bahuvrihi samas )

जिस समास में दोनों पदों के द्वारा एक विशेष (तीसरे) अर्थ का बोध होता है, वह बहुव्रीहि समास कहलाता है । बहुव्रीहि समास में आए पदों को छोड़कर जब किसी अन्य पदार्थ की प्रधानता हो तब उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जिस समस्त पद में कोई पद प्रधान नहीं होता , दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं , उसमें बहुव्रीहि समास होता है।

उदाहरण:

  • नीलकंठ – नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव इस समास के पदों में कोई भी पद प्रधान नहीं है , बल्कि पूरा पद किसी अन्य पद का विशेषण होता है।
  • चतुरानन – चार है आनन जिसके अर्थात ब्रह्मा
  • चक्रपाणि – चक्र है पाणी में जिसके अर्थात विष्णु
  • चतुर्भुज – चार है भुजाएं जिसकीअर्थात विष्णु
  • पंकज – पंक में जो पैदा हुआ हो अर्थात कमल
  • वीणापाणि – वीणा है कर में जिसके अर्थात सरस्वती
  • लंबोदर – लंबा है उद जिसका अर्थात गणेश
  • गिरिधर – गिरी को धारण करता है जो अर्थात कृष्ण
  • पितांबर – पीत हैं अंबर जिसका अर्थात कृष्ण
  • निशाचर – निशा में विचरण करने वाला अर्थात राक्षस
  • मृत्युंजय – मृत्यु को जीतने वाला अर्थात शंकर
  • घनश्याम – घन के समान है जो अर्थात श्री कृष्ण
  • दशानन – दस है आनन जिसके अर्थात रावण
  • नीलांबर – नीला है जिसका अंबर अर्थात श्री कृष्णा
  • त्रिलोचन – तीन है लोचन जिसके अर्थात शिव
  • चंद्रमौली – चंद्र है मौली पर जिसके अर्थात शिव
  • विषधर – विष को धारण करने वाला अर्थात सर्प
  • प्रधानमंत्री – मंत्रियों ने जो प्रधान हो अर्थात प्रधानमंत्री
  • महात्मा – महान् आत्मा है जिसकी अर्थात् ऊँची आत्मा वाला
  • गजानन – भगवान गणेश
  • त्रिनेत्र – भगवान शिव
  • वीणापाणी – सरस्वती
  • गिरिधर – गिरि को धारण करने वाले अर्थात् श्रीकृष्ण जी
  • नीलकण्ठ – नीला कण्ठ है जिनका- शिव जी
  • लम्बोदर – लम्बा उदर है जिनका अर्थात् गणेशजी।
  • मक्खीचूस – बहुत कंजूस व्यक्ति

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