वर्षा ऋतु को ऋतुओं की रानी कहा जाता है। भारत में वर्षा ऋतु का महत्व दूसरे देशों के मुकाबले बढ़ जाता है, क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है, साथ ही मौसमी चक्रीय देश है। भारत एक विविधता से भरा देश है। हमारे देश में कुछ राज्य ऐसे है, जहां वर्षा ऋतु आते ही बाढ़ आ जाता है, और साथ ही कुछ ऐसे भी राज्य है, जहां बारिश की एक भी बूंद नहीं गिरती है, बिल्कुल सुखा पड़ा होता है। इस लिए वर्षा ऋतु भारत में काफी लाभकारी मानी जाती है, क्योंकि हमारे देश में इसी ऋतु में जल की प्राप्ति होती है और पानी को संचय कर के रखा जाता है। वर्षा ऋतु को देवी के रूप में पूजा भी जाता है। भारत देश के कृषि इस ऋतु की पूजा भी करते हैं। वर्षा ऋतु के आगमन से सबसे ज्यादा खुशी किसानों को होती है, क्योंकि उनका जीवनयापन उनके खेत की कमाई पर हो होता है। भारत जो एक कृषि प्रधान देश है, जहां की 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर आधारित है वहां वर्षा ऋतु का महत्व काफी बढ़ जाता है। तो चलिए आज आपको हम इस लेख में वर्षा ऋतु के जिसे हम ऋतुओं की रानी के रूप में जानते हैं उसके लाभ बताते हैं।
वर्षा किसे कहते हैं ?
वायुमंडल में मौजूद जलवाष्प की मात्रा द्राविभूत होकर जब बूंदों के रूप में धरातल पर गिरती है, तो उसे वर्षा कहा जाता है। हमारे भारत देश में जून से लेकर सितंबर माह तक वर्षा होती है।
वर्षा ऋतु के लाभ ( Varsha ritu ke labh )
वर्षा से कई तरह के लाभ होते हैं, जैसे-
- वर्षा से गर्मी का प्रकोप कुछ हद तक कम होता है ।
- वर्षा होने से ही किसानों की खेती के लिए उपयुक्त पानी की उपलब्धता होती है।
- वर्षा के कारण ही पशु,पक्षियों तथा पालतू जानवरों के लिए भी पानी की सुविधा हो जाती है ।
- वर्षा पानी पीने का भी एक मुख्य स्रोत है कहीं कहीं ऐसा भी होता है की पानी की सुविधा न होने पर वर्षा पर ही निर्भर होना पड़ता है।
- पीने के लिए पानी मिलता है
पीने के लिए पानी का मुख्य स्त्रोत वर्षा ही है, जो वर्षा ऋतु के आगमन से पूरी होती है। अगर ये ऋतु ना आए तो धरती पर जीवन असंभव हो जायेगा, कोई भी इंसान या कोई भी जीव जी नही पाएगा। हर जीव को जीने के लिए पानी की जरूरत होती है बिना पानी के कोई भी नही जी सकता है। वर्षा ऋतु को ऋतुओं की रानी यूं ही नहीं कहा जाता है। ये ऋतु जीवन दायिनी ऋतु है, इस लिए इसे ऋतुओं की रानी कहा जाता है और इस ऋतु को देवीय स्थान प्राप्त है। वर्षा ऋतु में ही भारत में वर्षा होती है कभी-कभी बिन मौसम बरसात भी होती है। लेकिन धरती पर पानी का मुख्य स्त्रोत तो वर्षा ही है। वर्षा के पानी से ही धरती पर नदी-नाले, कुंआ, तालाब, झरना, पोखरा, नहर, बांध आदि में पानी का संचय किया जाता है। अगर बारिश ही न हो तो धरती भी सुख जायेगी और धरती में से हैंडपंप या मोटर के माध्यम से भी पानी नही मिलेगा। किसी वर्ष अगर वर्षा ऋतु ही ना आए तो जो पानी आज मुफ्त मिल रहा है, वो पानी भी उस साल खरीदना पड़ेगा। यह वर्षा ऋतु का लाभ ही है की पीने का पानी हमे आसानी से मिलता है।
- खेत की सिंचाई के लिए पानी मिलता है
हमारा भारत देश एक कृषि प्रधान देश है जहां की आधे से ज्यादा की आबादी खेती पर निर्भर है, इसीलिए वर्षा ऋतु का महत्व काफी हद तक बढ़ जाता है। पानी की प्राप्ति का मुख्य स्त्रोत वर्षा ही है, जो की वर्षा ऋतु में ही आती है। खेत की सिंचाई के लिए बोहोत ज्यादा प्रमाण में पानी की जरूरत होती है, जो वर्षा के जल से ही पूरी हो पाती है, या वर्षा के संचित जल से। कई सारे किसान खेती के लिए पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिये छोटे तालाब बनवाते हैं, मोटर लगवातें हैं, कुवें में जल का संचय करते हैं, ताकि सालों तक पानी की कमी न हो और साल में एक से ज्यादा बार खेती की जा सके। कुछ किसान तो वर्षा ऋतु के आगमन से कुछ दिन पहले ही खेती के लिए काम शुरू कर देते हैं, जिससे जल्द ही उत्पादन किया जा सके। अगर ये ऋतु ना आए और वर्ष में एक बार भी बारिश न हो तो खेत उत्पादन होगा ही नहीं और खाने पीने की चीजें जैसे की पानी, हरी सब्जियां, अनाज, फल आदि सब महंगे हो जायेंगे। इस लिए जीने के लिए भोजन जरूरी है और भोजन के लिए खेत उत्पान जो की वर्षा के बिना असंभव है।
- गर्मी को कम करने के लिए
वर्षा ऋतु में वर्षा के आगमन से धरती भींग जाती है, धरती की भीगी खुश्बू महक उठती है। जून से तपती गर्म जमीन भींगती है जिससे जमीन की गर्मी कम होती है। मिट्टी की नमी बनती है। गर्मी से सुखी पड़ीं बंजर जमीन में दरारें पड़ चुकी होती है, जो बारिश के पानी से भींग कर सही होती है। गर्मी के मौसम में सूर्य की तेज किरणों से सुख चुके पेड़ों की पत्तियां फिर से हरी-भरी हो जाती है, पेड़ फिर से लहलहा उठतें है और हरियाली छा जाती है, जिससे वातावरण की गर्मी कम होती है। अगर बारिश न हो तो धरती बंजर हो जायेगी इसकी उत्पादन क्षमता बिलकुल खत्म हो जायेगी, साथ ही ज्वालामुखी फटने और भूकंप जैसी कई समस्याएं होने लगेंगी। वर्षा ऋतु हमें इन सारी समस्याओं से बचाती है, और धरती को जीने लायक, उत्पादक व सामान्य तापमान का बनाती है।
- चर्म रोग से छुटकारा मिलता है
पुराने समय से ही कहा जाता है की वर्षा ऋतु की पहली बरसात में नहाने से शरीर के कई सारे रोग ठीक हो जाते हैं, खास कर के चर्म रोग। गर्मी के मौसम में कई तरह के चमड़ी से सम्बन्धित समस्याएं होती है जैसे की घमौरियां, खुजली, फोड़े आदि। गर्मी के मौसम में हुई स्किन इन्फेक्शन को वर्षा ऋतु की पहली बारिश में नहाने से ठीक किया जा सकता है।
- संस्कृति की संरक्षक के रूप में वर्षा ऋतु
भारत एक धार्मिक देश है, जहां जीवनदात्री ऋतु की भी पूजा की जाती है, खास कर के किसान के लिए तो वर्षा एक दैवीय ऋतु है। हमारे देश में पेड़ों की भी पूजा की जाती है, जो वर्षा के होने से ही हरे-भरे रहते है। हमारे देश में नदियों की भी पूजा की जाती है जो वर्षा ऋतु के बिना सूखे पड़ जाते है, नदियों की पूजा कई सारे त्योहार में, विधियों में की जाती है जो की वर्षा के कारण ही बहते है। जैसे की छठ महापर्व में नदी के घाट पर पूजा की जाती है। मूर्ति पूजन के बाद मूर्ति की विसर्जन की जाती है। मृत्यु के पश्चात अस्थियों का विसर्जन किया जाता है। इस लिए हम कह सकते हैं कि वर्षा ऋतु संस्कृति का संरक्षण करती है।
वर्षा से हानि
- जिस तरह एक सिक्के के दो पहलू होते है ठीक उसी तरह वर्षा में भी लाभ व हानि दो पहलू होते हैं ।
- अत्यधिक वर्षा होने से घर व मकानें बह जाती है, तथा इससे जन धन की हानि होती है ।
- बहुत अधिक वर्षा होने के कारण सड़कों व गलियों में पानी जमा हो जाता है जिससे आने जाने में असुविधा होती है ।
- वर्षा ऋतु में हर जगह कीचड़ भर जाता है इससे गंदगी बढ़ती है ।
- वर्षा ऋतु में अनेक प्रकार के बीमारियों का खतरा बना रहता है ।
- अत्यधिक वर्षा से पशु पक्षियों तथा जीव जंतुओं के लिए भी खतरा बना रहता है ।
- अत्यधिक वर्षा के कारण किसानों के फसल भी बर्बाद हो सकता है ।
वर्षा के प्रकार
वर्षा तीन प्रकार की होती है-
- संवहनीय वर्षा
- पर्वतीय वर्षा
- चक्रवातीय वर्षा
संवहनीय वर्षा
जब वायुमंडल की वायु गर्म हो जाती है तो वह संवहन धाराओं के रूप में ऊपर उठती है और ऊपर उठकर फैल जाती है जिससे की और तभी इसका तापमान गिर जाता है और ऊंचाई अनुसार प्रति 1000 फीट पर 3.3 फारेनहाइट तापमान कम हो जाता है जिसके कारण आपेक्षिक आद्रता बढ़ जाती है जिससे वह संतृप्त होती है और संघनन प्रारंभ हो जाता है संघनन के बाद दौड़-धूप वर्षा बादल बनते हैं और मूसलाधार वर्षा होती है इस प्रकार की वर्षा भूमध्य रेखीय क्षेत्रों में नियंत्रित रूप से प्रतिदिन होती है।
पर्वतीय वर्षा
उष्ण और आद्रता वनों के मार्ग में जब कोई पर्वत पठार ऊंची पहाड़ियां आ जाती है, तो पवन को ऊपर चढ़ना पड़ता है। ऊपर उठने से ठंडी हो जाती है और वर्षा कर देती है मानसूनी प्रदेशों में तथा पछुआ हवाओं की पेटी में इस प्रकार की वर्षा अधिक होती है| वायु की दिशा वाले सामने पर्वतीय भाग में अधिक वर्षा होती है तथा विपरीत भाग में कम वर्षा होती है इसे वृतीछाया प्रदेश कहते हैं। इस कमी का कारण यह है कि हवाएं पर्वत से टकराकर सामने वाले भाग में अधिक वर्षा कर देती है। क्योंकि जब वह पर्वत के दूसरी ओर नीचे उतरती है तब तक उनकी वर्षा करने की क्षमता घट जाती है। तथा उतरते समय दबाव के कारण वे गर्म होने लगती है और गर्म हवाएं वर्षा नहीं करती हैं।
चक्रवातीय वर्षा
चक्रवात के आंतरिक भाग में जब भिन्नता वाली पवने आपस में मिलती हैं तो ठंडी हवाएं गर्म हवाओं को ऊपर की ओर धक्का देती है। ऊपर उठने पर पवन ठंडी हो जाती है और जिसके फलस्वरूप वर्षा होती है|
वर्षा ऋतु में इंद्रधनुष का सौंदर्य
यह एक ऐसा ऋतु है जिसमें इंद्रधनुष के सौंदर्य को अनेक बार देखा जा सकता है। सात रंगों का यह दृश्य अत्यधिक मनभावन होता है जिसे हर उम्र के मनुष्य देखना पसंद करते हैं और प्रकृति के इस मनभावन दृश्य को देखने के लिए अनेक लोग वर्षा के दिनों का इंतज़ार करते है। वातावरण तो खुशनुमा होता ही है लेकिन जिस-जिस दिन इंद्रधनुष का सतरंगी दृश्य आकाश में साफ-साफ दिखाई देता है उस दिन प्रकृति के सौंदर्य में मानो चार चाँद लग जाता है और लोगों के जीवन में खुशियों के रंग भर जाते है।
मनुष्य के साथ-साथ पशु-पक्षी भी इस मौसम का बेसब्री से इंतज़ार करते और राहत की साँस लेते है। इन दिनों असमान भी साफ-साफ और आसमानी चमक के साथ दिखाई देता है। कभी-कभी इंद्रधनुष के सातों रंग दिखाई देते जिसे मनुष्य अपने कैमरे में कैद कर लेते है। आज-कल पेड़-पौधों की लगातार कटाई और बढ़ते प्रदूषण के कारण यह दृश्य भी बहुत कम देखने को मिलता है।
वर्षा ऋतु और त्योहार
इस मौसम में मनमोहक वातावरण के साथ-साथ त्योहारों के आने की ख़ुशी भी लोगों के मन में होती है। इस ऋतु के आने के बाद ही भारत देश में त्योहारों की कतार लग जाती है और वातावरण में मौजूद नमी मनुष्य के शरीर को राहत प्रदान करती है जो लोगों के त्योहारों की ख़ुशी को और भी बढ़ा देता है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत देश में त्योहारों का आगमन वर्षा ऋतु के बाद होता है क्योंकि अधिकतर त्योहार इसी मौसम के बाद आते है। इस मौसम के बाद ही भारत देश में तीज, रक्षा बंधन, ओणम जैसे आदि प्रसिद्ध त्योहार भारतवासियों द्वारा हर्ष के साथ मनाए जाते है। यह कहा जा सकता है कि वर्षा ऋतु सभी महत्त्वपूर्ण त्योहारों के स्वागत की तैयारी करता है और धरती को हरा-भरा सुंदर बनाकर मनुष्य के त्योहार तथा उनकी ख़ुशियों में हमेशा चार चाँद लगा देता है।
वर्षा का दृश्य
इस ऋतु के आते ही सर्वत्र उल्लास छा जाता है और जीव-जंतु के अंदर आनंद के बीज फूटने लगते है। चारों ओर वर्षा का पानी भरा होता है और उसमें मेंढकों की भरमार होती जिनकी टर-टर सुबह-शाम कानों में गूँजती रहती है इस जीव की ऐसी ध्वनि केवल बरसात के मौसम में ही अधिक सुनने को मिलती है। एक तरफ चमकती हुई बिजली आसमान की शोभा को कई गुनी बढ़ाती है तो दूसरी ओर बरसात की बूँदों के साथ पेड़-पौधें भी हिलते डोलते झूमते हुए नज़र आते है।
गाँव के तालाबों और नहरों में पानी लबालब भरा होता है जिसका आस-पास के लोग भरपूर उपयोग करते है। इस मौसम में अनेक रंग-बिरंगे फूल खिलते है जो इस मौसम को और भी रोमांचित बना देते है। धरती का ऐसा सौंदर्य रूप देखकर बादल भी प्रेमी के समान धरती पर अपना प्रेम रूपी जल बरसाने लगते है तथा पृथ्वी को और भी अधिक शोभायमान बना देते है। सूरज की गर्मी से जल रहे खेतों को जल मिलता है, इस मौसम में पहली बरसात को देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे धरती की प्यास समाप्त हो रही हो।
इस मौसम में वर्षा के समय का निर्धारण मौसम विभाग के सदस्य भी नहीं कर पाते कभी तो बिना काले बादलों के ही अचानक बरसात होने लगती है और कभी-कभी तेज़ आँधी-तूफ़ान के साथ-साथ काले-काले बादल हो तब भी बरसात नहीं होती साथ ही कभी-कभी लगातार घंटों तक वर्षा होती रह जाती है। इसके कारण मौसम संबंधित आकाशवाणी तथा दूरदर्शन की ख़बरें कभी-कभी गलत सिद्ध हो जाती है। कभी-कभी बरसात के रुकने ही वाली होती है कि फिर से झमाझम बारिश होने लगती है। इस प्रकार इस मौसम में वातावरण बदलता है।
यह मौसम आम जनता के लिए कई प्रकार की परेशानियाँ भी साथ ले आता है जिसका सामना करना कभी-कभी सरल नहीं होता साथ ही बाढ़ जैसी भयानक प्राकृतिक आपदा को भी मनुष्य तथा सरकार को झेलना पढ़ता है।